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इन्साफ सबके लिए समान फिर भी भेद क्यों ?

हमारे देश का कानून बहुत अच्छा है इसमें किसी भी तरह का कोई भेदभाव नहीं किया जाता चाहे वह गरीब हो या अमीर। एक ही कानून व्यवस्था हमारे समाज में लागू है पर परेशानी कहा है? सवाल यह है, अगर कानूनों के पालन करने वाले यानी नागरिको की बात की जाए तो यहां बड़े तौर पर भेदभाव पाया जाता है! भेदभाव? यह एक गेहरा अध्ययन का विषय है.... जिसको आसानी से नहीं समझा जा सकता पर समाज इसकी बड़ी चपेट में है इसमें देश के मामूली से मामूली नागरिक शामिल हैं। अब सवाल उठता है क्यों और कैसे?

कानून व्यवस्था में न्यायिक प्रणाली का योगदान ज़्यादा होता है जो अपराधों की सूची को कम करने का प्रयास करता है पर न्याय मिले या नही यह बात अलग है न्याय स्थान (थाना क्षेत्र, कोर्ट, नेता के घर) पर भेद पाए जाते हैं यह भेद धार्मिक तोर पर ही नहीं बल्कि आर्थिक रूप में भी हो सकते हैं। अब किस तरह न्याय को समाज के सामने परोस रहे हैं यह जान पाना मुश्किल है। नागरिक अगर परेशान (अपराधी या पीड़ित) हैं उसे दूर करने के लिए वह सबसे पहले थाने जाकर न्याय की उम्मीद करता है चाहे वह गरीब हो या अमीर, एक अच्छे कपड़ो, गाड़ी आदि के साथ व्यक्ति थाने जाता है तो उसे आदर के साथ बिठा कर सम्मान दिया जाता है चाहे वह अपराधी क्यो ना हो। उसको हर तरफ से सहारा दिया जाता है अगर कोई निर्दोष गरीब लोगों इंसाफ के लिए जाता है तो उससे बात तक नहीं की जाती. क्यो? इस वजह से की वो गरीब है।

कोर्ट में लाखो केस दर्ज किए जाते हैं पर न्याय क्यो नहीं किया जाता? अपराधियों को मोहलत क्यो दी जाती है सिर्फ़ इसलिए तुमने कम महान काम किया है अभी तो ज़मानत होकर तुम्हें और काम करने है। कानून का उल्लंघन करने के लिये भी कई कानून बनाए जाते हैं पर उसका फायदा किया?कानूनो को लागू करने के बाद उसको माना नहीं जाता क्यो? कानून संविधान का अंश होता है क्या संविधान इतना कमज़ोर है या उसे बना दिया है, अगर ऎसा नहीं है तो क्यो अपराध हो रहे हैं,इसलिए ही न्याय नहीं होता यह भी एक व्यवसाय बन गया है, ज़रा पैसे कमाले तभी तो इंसाफ देंगे नहीं तो कहा से चलेगा खर्चा वाकिलो का, पुलिस वालों का, इसी तरह कई लोग इंसाफ की देहलीज़ पर आते ही नहीं क्योंकि यहां इंसाफ को पैसों से तोला जाता है अपराधों से नहीं।

निर्भया केस ने रूह को झिंझोड़ के रख दिया था आज भी वही क्यो और कब तक,और हम ऎसे कितनी बेटियों को खो देंगे अगर उस समय निर्भया को हाथों हाथ इंसाफ दे दिया जाता तो शायद आसिफ़ा के साथ यह ना हुआ होता। आसिफ़ा.. तुम बहादुर थी,तुम्हारी मासूमियत को उनकी हैवानियत ने लूट लिया... ऎसा क्यो किया... तुम वापस तो नहीं आ सकती पर इंसाफ तो मिल सकता है.. आज इंसानियत खत्म हो गई और हैवनियत शुरु ... कहा गए वो लोग जो इज़्ज़त दिया करते थे,ऊची आवाज़ तक नहीं करते थे, कल भी वही धार्मिक लोग हुआ करते थे जो आज है फिर इतनी हवस कहां से आई, हवस जो एक बड़ी बर्बादी है.. इस हवस को ख़तम करके आसिफ़ा जैसी कितनों को बचया जा सकता है इसमें बड़ा योगदान न्याय का है अगर न्याय ऎसा हो जिससे अपराधियों की रूह कांप उठे फिर पता चलेगा कि क्या होती है हवस..।

शादमा मुस्कान



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