गुलामी की जंजीरों को तोड़कर 15 अगस्त, 1947 को भारत आजाद हुआ था। स्वतंत्रता न केवल व्यक्तिगत सपनों को अपने साथ लेकर आई, बल्कि आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक सपनों को भी अपने साथ लेकर आई। देश की स्वतंत्रता आर्थिक इतिहास में अपने आप में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी। करीब 200 साल गुलामी के कारण देश में बेहद गरीबी थी। शाक्षरता दर भी बेहद नीचे थी जिसके चलते उस वक्त रोजगार भी ना के बराबर थे। उस समय देश की करीब 85 से 90 प्रतिशत जनता खेती पर निर्भर थी। लोगों के पास खुद की जमीन थी, इसलिए खेती करके पैसा कमाना ज्यादा अच्छा समझते थे। चूंकी देश उस साल आजाद हुआ था, इसलिए नौकरियां बेहद कम थीं। आजादी के बाद केंद्र सरकार ने भी उसक वक्त खेती पर ज्यादा फोकस किया।
1951 में लागू की गई पहली पंचवर्षीय योजना में भी खेती और सिंचाई पर ही जोर दिया गया था ताकि खाद्य पैदावर को और बढ़ावा दिया जा सके और विदेशों से मंगाए जाने वाले खाद्यायन्न पर निर्भरता कम की जा सके। सरकार का यह कदम सफल रहा। इससे आर्थिक विकास भी उस वक्त सालाना 3.6 प्रतिशत रहा, जबकि टारगेट 2.1 प्रतिशत का था। जैसे जैसे सरकार पंचवर्षीय योजनाओं को लागू करती रही, वैसे वैसे देश में विकास की दर बढ़ती रही और नौकरियां भी धीरे धीरे बढ़ती रहीं।
हालांकि, 1991 से 1996 के बीच पीवी नरसिम्हा राव सरकार द्वारा शुरू किए गए उदारीकरण से देश में नौकरियों की एक दम बाढ़ सी आ गए थी। सरकारी नौकरियों के अलावा निजी सेक्टरों में भी नौकरियां बढ़ गई क्योंकि सरकार ने नियमों में ढील देते हुए निवेश को बढ़ावा दिया जिससे निजी क्षेत्र में कई कंपनियों द्वारा उद्योग लगाने और ऑफिस खोलने से लोगों के पास नौकरियों के अवसर बढ़ गए। राव सरकार के बाद आई दूसरी सरकारों ने भी उदारीकरण को जारी रखा। वर्तमतान में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार भी आर्थिक और उदारीकरण पर जोर दे रही है जिससे और नौकरियां पैदा की जा सके।
आज आईटी सेक्टर बहुत तेजी से बढ़ रहा है जिससे और नौकरियों के दरवाजे खुल रहे हैं। वहीं, केंद्र सरकार कौशल विकास पर भी जोर दे रही है ताकि लोग खुद के भी स्वरोजगार शुरू कर सके। सरकार के इस कदम से लोगों ने कौशल विकास सीखकर आज खुद अपने पैरों पर खड़ें हैं। सरकारी नौकरियों से ज्यादा आज लोग निजी सेक्टर की ओर नौकरी के लिए रुख कर रहे हैं।
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