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2010 Vs 2019: आंकड़ों के अनुसार इतना अंतर आ चुका है सैलेरीज में, पढ़े रिपोर्ट

2010 Vs 2019: अगर हम 2010 वर्सेज 2019 की बात करें तो उस समय के सैलेरी ट्रेंड्स और आज से सैलेरी ट्रेंड्स में जमीन-आसमान का अंतर आ चुका है। 2010 में जिन सेक्टर्स में अच्छी खासी ग्रोथ देखी जा रही थी, आज वो सेक्टर युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करने में असफल साबित हो रहे हैं और वर्ष 2019 में युवा अच्छे कॅरियर ऑप्शन की तलाश में नए सेक्टर्स की ओर ध्यान दे रहे हैं। आइए जानते हैं कि 2010 और 2019 में सैलेरी ट्रेंड्स का क्या अंतर रहा।

अर्थव्यवस्था पर निर्भर करता है सैलेरी का घटना या बढ़ना
अगर हम इकोनॉमी के हिसाब से देखें तो किसी भी देश में सैलेरी क्या होनी चाहिए, यह बात उस देश की इकोनॉमी और वहां के लोकल मार्केट की डिमांड पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए वर्ष 2000 के दशक में जबकि भारत की अर्थव्यवस्था उदारीकरण के चलते तेजी से ग्रोथ कर रही थी, तब वर्ष 2008 में सैलेरी हाईक ट्रेंड में 13.3 प्रतिशत की ग्रोथ देखी गई। इसके बाद 2009 और 2010 में वित्तीय संकट के चलते सैलेरी हाईक ट्रेंड में तेजी से गिरावट देखने को मिली और हाईक 6.6 प्रतिशत ही रह गई। युवाओं में बढ़ती निराशा और अर्थव्यवस्था में आई गिरावट को दूर करने के लिए सरकार द्वारा किए गए उपायों के चलते 2012 में एक बार फिर सैलेरी हाईक में 10.7 प्रतिशत की ग्रोथ देखने को मिली। इस तरह से हम देख सकते हैं सैलेरी हाईक ट्रेंड पूरी तरह से अर्थव्यवस्था की स्थिति और मार्केट में किसी सेक्टर विशेष की रिक्वायरमेंट और डिमांड को देखते हुए तय होता है। आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2019 में यही सैलेरी हाईक ट्रेंड 9.7 प्रतिशत आंका जा रहा है जो आज की विश्वव्यापी मंदी की स्थिति में भी काफी अच्छा माना जा सकता है।

नए सेक्टर वर्सेज पुरानी जॉब्स
दूसरा बड़ा महत्वपूर्ण कारक जिस पर सैलेरी का घटना या बढ़ना निर्भर करता है, वो है मार्केट में किसी खास सेक्टर में कितनी जॉब्स है और उन जॉब्स के लिए कितने काबिल युवा उपलब्ध हैं। उदाहरण के लिए आज आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का क्षेत्र बहुत ज्यादा तेजी से ग्रोथ कर रहा है लेकिन इस सेक्टर में काम करने के लिए स्किल्ड युवाओं की भारी कमी है, ऐसे में इस सेक्टर में शुरुआती सैलेरी ही लाखों रूपए से स्टार्ट हो रही है, अगर किसी को चार-पांच वर्षों का अनुभव है तो सैलेरी मिलियन में पहुंच सकती है। इसी तरह वर्ष 2010 तक प्रिंटिंग प्रेसों में प्लेटमेकर्स की जॉब हुआ करती थी, सारा काम मैन्युएल होता था, ऐसे में लोगों की डिमांड थी परन्तु आज सारा काम ऑटोमैटिक होने से इस क्षेत्र के सभी स्किल्ड लोग पूरी तरह से बेरोजगार हो गए हैं।

एजुकेशन पर करता है निर्भर
सैलेरी ट्रेंड एजुकेशन पर भी निर्भर करता है। 2000 के दशक में देश में तेजी से इंजीनियरिंग कॉलेज खुले जिनमें हर वर्ष लाखों की संख्या में युवा इंजीनियरिंग पास करके निकलने लगे। उस वक्त तक इंजीनियर्स को अच्छी खासी सैलेरी मिला करती थी परन्तु जब इतनी ज्यादा तादाद में युवा इंजीनियर मार्केट में आने लगे तो सैलेरी पैकेज बहुत तेजी से नीचे गिरने लगा और इसके साथ ही इंजीनियरिंग कॉलेज भी बंद होने लगे। अब एक बार फिर से इंजीनियरिंग के सेक्टर में सैलेरी ग्रोथ हो रही है।



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