बेंगलूरू की अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी द्वारा जारी 'द स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया' (SWI) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दो वर्षों में लगभग 50 लाख लोगों ने अपनी नौकरियां खोई हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि बेरोजगारी बढ़ने की शुरूआत नवंबर 2016 में हुई नोटबंदी के साथ हुई। हालांकि नौकरी कम होने तथा नोटबंदी के बीच कोई सीधा संबंध स्थापित नहीं हो पाया है।
रिपोर्ट के अनुसार बेरोजगारी 2011 के बाद से ही लगातार बढ़ रही है, लेकिन 2016 के बाद से उच्च शिक्षा धारकों के साथ कम पढ़े लिखे लोगों की नौकरियां छिनी और उन्हें मिलने वाले काम के अवसर कम हुए। रिपोर्ट के मुताबिक, बेरोजगारी के शिकार उच्च तथा अल्प शिक्षित दोनों ही तरह के लोग हुए हैं।
महिलाओं की बेरोजगारी हुई 34 फीसदी
रिपोर्ट में शहरी महिलाओं में बढ़ती बेरोजगारी के भी आंकड़े हैं। इसके मुताबिक, ग्रेजुएट महिलाओं में से 10 प्रतिशत काम कर रही हैं, वहीं 34 प्रतिशत बेरोजगार हैं। 20 से 24 वर्ष के युवाओं में बेरोजगारी बढ़ी है।
5 लाख लोगों को सर्वे
भारत के श्रम बाजार के बारे में जारी इस रिपोर्ट का आधार उपभोक्ता (कन्ज्यूमर) पिरामिड सर्वे रहा, जिसे सेंटर फॉर मॉनिटरिंग द इंडियन इकॉनमी करवाता है। सर्वे हर चार महीने में किया जाता है, जिसमें 1.6 लाख परिवारों और 5.22 लाख लोगों को शामिल किया जाता है।
संरक्षणवाद हल नहीं
भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि संरक्षणवाद से नौकरियों को बचाने में मदद नहीं मिलती है। हालांकि यह ऑटोमेशन एवं कृत्रिम मेधा (एआई) से रोजगार पर पड़ने वाले प्रभाव को थोड़ा कम करता है। राजन ने यह बात संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में विकास और रोजगार पर आयोजित एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कही।
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